Hindi Kavita On Khilauna



खिलोना!






वो खिलौने को पाने के लिए सपने संजोता,
एक छोटे बच्चे के पास जब कोई खिलौना नहीं होता,

जब वो बेजान खिलौने को पा लेता है
वो मन ही मन बहोत खुश होता है,

वो उन दोनों का न जाने कैसा मेल था
वो बच्चा अपने खिलौने के साथ दिन भर खेलता,

वो खिलौना अपने मालिक के बहुत पास था,
उसका भी मन लग गया जब भी वो निराश था,

जब वक़्त गुजरा तो वो बच्चा छोटे से बड़ा होगया
और इस भीड़ में उसका खिलौना न जाने कहा खो गया,

धीरे धीरे उस बच्चे का मन भरने लगा
अब वो अपने खिलौने से किनारा करने लगा,

धीरे धीरे वक़्त रेत सा फिसल गया
धीरे धीरे वो खिलौने के साथ खेलना भी भूल गया,

अब वो उस खिलौने को हाथ भी नहीं लगाता,
हाथ क्या लगाये अब तो वो उसके पास भी नहीं जाता

अब वो खिलौना मन ही मन खूब रोता,
अपने मालिक के साथ फिरसे वो खेल के सपने संजोता,

मन ही मन वो खिलौना टूट के बिखर गया
अकेला था वो और अकेला ही रह गया

अपने मालिक से बिछड़ने के गम में वो खिलौना किसी कोने में पड़ा रहा,
वो बच्चा तो भूल गया उसे मगर उसका दिल अभी भी अपने मालिक से जुड़ा रहा,

खिलौने को भी धीरे धीरे बात समझ आ गया
वो जान गया उसके मालिक को शायद कोई और खिलौना भा गया

लेकिन सच बात तो ये है की किसी खिलौने की भावनाए नहीं होती
उसे ख़ुशी और ग़म भी महसूस नहीं होती,

उसे उस छोटे बच्चे के बिछड़ने का गम भी तकलीफ नहीं देता
वो किसी कोने में भी पड़ा हो वो फिर भी नही रोता,


 बिलकुल वैसे ही मेरे अन्दर भी ज़ज्बात नहीं,
तकलीफें महसूस हो मेरे इस बेजान से जिस्म को ऐसा भी मेरे अंदर कुछ नही,

बेजान खिलौने की तरह बातें बहुत सी है अनकहीं  मेरे अन्दर भी  उसकी तरह भावनाए नहीं,

मगर उस खिलौने की इतनी सी गुजारिश है की उसका मालिक उसके साथ हमेशा खेले। मन भर जाने के बाद भी उसे अपने पास ही रखे।

मेरी भी कुछ ऐसी ही गुजारिश है, तुम अपने अन्दर के बचपने को मरने मत देना तुम ऐसे ही अपने इस खिलौने के साथ खेलती रहना।

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